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साहित्य समाज को आईना दिखाता है. एक साहित्यकार अपनी लेखनी की शक्ति का प्रयोग कर समाज में व्याप्त कुरीतियों भ्रष्टाचार वैमनस्य आदि पर कुठाराघात कर एक नए समाज के निर्माण में अपना योगदान दे सकता है.
श्री सुरेंद्र कुमार अरोड़ा एक ऐसे ही साहित्यकार हैं. अपने लेखन के माध्यम से अरोड़ा जी समाज में निरन्तर घर कर रही संवेदनहीनता और निरन्तर पक रही भ्र्ष्टाचारी मानसिकता की ओर सबका ध्यान खीचना चाहते हैं. अपनी कलम के माध्यम से आप देश विरोधी शक्तियों को सख़्त संदेश प्रेषित करते हैं. ताकि ऐसी ताकतें देश अखंडता को कोई नुकसान ना पहुँचा पाएं. समाज में दिन प्रतिदिन हो रहे मूल्य ह्राश पर रोक लगाने एवं संस्कारहीन प्रवर्तियों को निरुत्साहित करने में अपका प्रयास सराहनीय है.
भारतवर्ष में एक अजीब किस्म की मानसिकता घर कर रही है. खुलेपन के नाम पर ऐसे विचारों को बढ़ावा दिया जा रहा है जो न सिर्फ हमारी संस्कृति के विरुद्ध हैं वरन देश को खण्डित करने का अपराध भी कर रहे हैं. ऐसे षड्यन्त्रों का आप अपनी लेखनी के माध्यम से पर्दाफाश करते हैं.
देश व समाज के प्रति इनका प्रेम इन्हें समाज के लिए कुछ करने की प्रेरणा देता है. अपना यह दायित्व वह लेखन कर्म के माध्यम से पूरा करते हैं. आप लघुकथा, कहानी, कविता तथा लेख के ज़रिए लोगों में देश प्रेम तथा सामाजिक दायित्व की चेतना जगा रहे हैं.
आपका जन्म 9 नवंबर 1951 में जगाधरी यमुना नगर हरियाणा में हुआ. आपके व्यक्तित्व पर आपके पिता श्री मोहन लाल जी की सादगी और ईमानदारी का गहरा प्रभाव पड़ा. वह रेल विभाग में लिपिक थे और रिश्वतखोरी से घ्रणा करते थे. उन्होंने जीवन भर आर्थिक तंगी का सामना किया किंतु किसी भी परिस्थिति में अपने मूल्यों से समझौता नहीं किया. छात्र जीवन में उन शिक्षकों जिनमें राष्ट्र प्रेम और कर्तव्यपरायणता कूट – कूट कर भरी थी ने इनके विचारों पर सकारात्मक प्रभाव डाला. अपने लेखन से आप उनके प्रति आभार प्रकट कर उनका ऋण चुकाते हैं.
आपने शिक्षा निदेशालय दिल्ली के अंतर्गत 3 2 वर्ष तक जीव – विज्ञानं के प्रवक्ता पद पर कार्य किया. 2013 में अवकाश प्राप्ति के पश्चात पूर्णतया साहित्य सेवा में लिप्त हैं. लेखन की विभिन्न विधाओं जैसे लघुकथा, कहानी, बाल कथा, कविता, बाल कविता पत्र लेखन, डायरी लेखन में आपको महारत प्राप्त है.
आपकी रचनाएं कई प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं. आपकी प्रकाशित रचनाएं निम्न लिखित हैं
आज़ादी ( लघुकथा – संगृह )
विष कन्या ( लघुकथा – संगृह )
तीसरा पैग ( लघुकथा – संगृह )
हैप्पी बर्थ डे नन्हें चाचा का ( बाल कथा – संगृह )
बन्धन मुक्त तथा अन्य कहानियां ( कहानी – संगृह )
मेरे देश की बात ( कविता – संगृह )
आपने निम्न लघुकथा संग्रहों का संपादन भी किया है
“तैरते – पत्थर डूबते कागज़ ”
” दरकते किनारे ”
इसके अतिरिक्त एक कहानी संग्रह
बिटिया तथा अन्य कहानियां
आपको निम्न पुरुस्कार भी प्राप्त हुए हैं
हिंदी अकादमी ( दिल्ली ) दैनिक हिंदुस्तान ( दिल्ली ) से पुरुस्कृत
भगवती प्रसाद न्यास गाज़ियाबाद से कहानी बिटिया पुरुस्कृत
अनुराग सेवा संस्थान लाल सोट (दौसा – राजस्थान ) द्वारा लघुकथा संगृह ”विष कन्या“ को वर्ष 2009 में पुरुस्कार मिला
स्वर्गीय गोपाल प्रसाद पाखंला स्मृति साहित्य सम्मान
वर्तमान में आप लघुकथाओं एवम काव्य को समर्पित त्रैमासिक पत्रिका “मृगमरीचिका” का सम्पादन करते हैं.
आपका मानना है कि “स्वार्थी प्रवृत्तियां लोगों की सरल मानसिकता का शोषण करती आई हैं. ऐसी प्रवर्तियों के छल को उजागर करना हर साहित्यकार का प्रथम कर्तव्य होना चाहिए. ऐसा करने से बहुत से न सही कुछ पाठक तो सावधान हो ही सकते हैं. हमारी जीवन यात्रा हमारे देश और समाज की जीवन यात्रा के मुकाबले सागर में बूँद के समान भी नहीं है परन्तु यही बूँदें कभी कभी ऐसा सकारात्मक या नकारात्मक प्रभाव छोड़ जातीं हैं कि देश और समाज का इतिहास ही नहीं वरन भूगोल भी बदल जाता है.”
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