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देश के कई हिस्सों खासकर महाराष्ट्र में गणेश उत्सव बहुत धूमधाम से बनाया जाता है. भाद्रपद के शुक्लपक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी के तौर पर मनाया जाता है. इसी दिन से गणेश उत्सव का आरंभ होता है जो अगले दस दिनों तक चलता है.
इसके लिए विशाल पंडाल बनाए जाते हैं जिनमे गजानन की विभिन्न मुद्राओं वाली प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा की जाती है. प्रतिदिन प्रातः एवं संध्या काल में पूरे विधिविधान से गणपति की पूजा अर्चना और आरती की जाती है. लम्बोदर के प्रिय मोदकों का भोग लगाया जाता है.
पंडालों की सज्जा पर विशेष ध्यान दिया जाता है. गणेश उत्सव समितियों द्वारा कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. उत्सव के अंत में गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन कर दिया जाता है. गणपति को विदा करते हुए लोग भावुक हो जाते हैं और विघ्नहर्ता से विनय करते हैं कि अगले वर्ष जल्दी आएं.
कुछ लोग घरों में भी गणपति की प्रतिमा स्थापित करते हैं. इसकी अवधि 3,5 या 11 दिन हो सकती है. जिसके बाद प्रतिमाओं का विसर्जन होता है.
लोग बेसब्री से अगले वर्ष की प्रतीक्षा करते हैं ताकी प्यारे बप्पा का पुनः स्वागत कर सकें.
वैसे तो महाराष्ट्र में कई भव्य पंडाल लगते हैं लेकिन लालबाग के राजा की ख्याति दूर दूर तक फैली हुई है. यह माना जाता है कि लालबाग के राजा सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाले हैं. दूर दूर से लोग इनके दर्शन को आते हैं.
1934 से लालबाग का पंडाल सजाया जा रहा है. जब 1932 में पेरू चाल का बाजार बंद हो गया तो वहाँ के मछुआरों तथा अन्य व्यवसायिओं ने गणपति से प्रार्थना की कि वह उनलोगों को बाजार के लिए स्थान दिला दें. उन्हें लालबाग में बाजार के लिए स्थान मिल गया. तब से लालबाग के बादशाह इच्छापूर्ति के लिए प्रसिद्ध हैं.
पिछले आठ दशकों से कांबली परिवार को लालबाग के राजा की प्रतिमा बनाने का गौरव प्राप्त है.
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