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राष्ट्रभाषा हिंदी को उसका सही स्थान दिलाना तथा उसे कार्यकारी भाषा बनाना डॉ. भोज कुमार मुखी के जीवन का प्रमुख उद्देश्य रहा है. देना बैंक में अपने 33 वर्षों के कार्यकाल में हिंदी भाषा को लागू करने का सराहनीय कार्य किया. बैंक की शाखाओं के प्रशासनिक कार्यालय तथा क्षेत्रीय कार्यालय को राजभाषा कार्यान्वयन के लिए प्रेरित करने के लिए 5 बार प्रधान कार्यालय द्वारा प्रथम पुरस्कार मिला. राजभाषा विभाग गृहमंत्रालय द्वारा कार्यालय को और डॉ. मुखी को अलग अलग सम्मानित भी किया गया. डॉ. मुखी विभिन्न बैंकों के अहिंदी भाषी कर्मचारियों के हिंदी प्रशिक्षण के प्रति समर्पित रहे.
लेखन के प्रति डॉ. मुखी में बचपन से ही रूझान था. कॉलेज में हिंदी साहित्य सभा का अध्यक्ष पद संभाला. उन्हीं दिनों कॉलेज की मैगज़ीन के लिए लिखते रहे. पहले लेखन व्यवस्थित नही था. अक्सर कागज़ के टुकड़ों पर लिख कर इधर उधर फेंक दिया करते थे. किंतु आपकी जीवन संगिनी श्रीमती सविता मुखी जी ने उन्हें ना सिर्फ व्यवस्थित किया वरन लेखन के लिए प्रेरित भी किया. उनसे प्रेरणा पाकर डॉ. मुखी ने बैंक की पत्रिका के लिए लिखना शुरू किया. उसके संपादन का कार्य भी किया. डॉ. मुखी लेखन की विभिन्न विधाओं जैसे कहानी, कविता, उपन्यास में कार्य करते हैं. दूरदर्शन राजकोट से चर्चा वार्ता भी प्रसारित होती है.
डॉ. मुखी का जन्म 4 सितंबर 1949 को हुआ था. दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी में एम. ए. किया. दिल्ली विश्वविद्यालय से इन्होंने पी. एच. डी की. भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति द्वारा डॉक्टर अॉफ फिलासफी की डिग्री प्रदान की गई. विषय था 1947 से 1970 के बीच उपन्यासों में निम्नवर्ग का चित्रण.
डॉ. मुखी ने डॉ. कमल किशोर गोयनका जी के साथ प्रेमचंद विश्वकोष के लिए भी काम किया है. प्रेमचंद विश्वकोष में प्रेमचंद जी की कुछ कहानियों का सारांश कर भाषा एवं शिल्प के बारे में लिखा गया है..
अपने लेखन के विषय में डॉ. मुखी का कहना है कि उनका लेखन कभी भी विषय आधारित नहीं रहा
आंख, नाक, कान के साथ-साथ दिलो-दिमाग हमेशा खुला रहा.समाज की धडकन सुनते-सुनते शब्द अपने आप कागज पर उतरते चले गए. भावनाएं निर्बाध गति से रूपायित होती गयीं. निम्न-मध्यवर्ग के जीवन की समस्याएं लेखन में साफ़ तौर पर उजागर होती हैं.
जीवन के प्रति आपका नजरिया है
“अपने लिए जीना भी क्या जीना है. अपनी खुशियाँ दूसरों को देना और दूसरों के लिए जीना ही सही मायनों में जीना है.”
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