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नियति से मुलाकात

parvaaz hounsale ki
parvaaz hounsale ki
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१५ अगस्त १९४७ के दिन हम स्वतंत्र हुए थे। हर वर्ष हम आज़ादी का जश्न मनाते हैं। राजनैतिक रूप से स्वतंत्र हुए 69 वर्ष बीत गए हैं। किंतु अभी भी हम कई बेड़ियों में जकड़े हैं। इन्हें तोड़े बिना हम आगे नहीं बढ़ सकते।
आज भी समाज कई अर्थहीन परम्पराओं की बेड़ियों में जकड़ा है। जिनके कारण समाज में अशिक्षा और गरीबी है। जातियों के आधार पर विघटन और गहरा रहा है। इससे समाज में वैमनस्य की स्तिथि उत्पन्न हो रही है। समाज का एक धड़ा आज भी पिछड़ा है जिसे आगे बढ़ने के अवसर नहीं मिलते। इन्हें मुख्यधारा में लाये बिना कोई भी तरक्की अधूरी है।
आज भी हमारे समाज में कन्या के साथ दुर्व्यवहार होता है। उसकी गर्भ में ही हत्या कर दी जाती है।  उन्हें लड़कों की भांति समान अवसर नहीं दिए जाते। जबकी देश की बेटियों ने कई अवसरों पर अपनी योग्यता साबित की है।  महिलाओं पर होने वाले अत्याचार दिन पर दिन बढ़ रहे हैं। यह कैसी विडंबना है कि जहाँ स्त्री को मातृशक्ति के रूप में पूजा  जाता हो उस समाज में उसकी यह दशा है।  हमें इस विरोधाभास को दूर कर स्त्रियों को उनका अधिकार और सम्मान देने की पहल करनी चाहिए।
हम सभी भ्रष्टाचार के मुद्दे पर एकमत होकर इसे समाज के कैंसर के तौर पर देखते हैं अक्सर इस पर बहस करते हैं, किंतु जाने अनजाने इसका हिस्सा बन जाते हैं।  थोडा़ चाय पानी देकर अपना काम करा लेना हमारे लिए छोटी सी बात है।  इसी प्रकार गंदगी का मुद्दा है।  हम सफाई तो चाहते हैं किंतु अक्सर स्वयं ही गंदगी फैलाते हैं।  यदि हमें भ्रष्टाचार मुक्त स्वच्छ और सुंदर भारत का निर्माण करना है तो हमें अपने दृष्टिकोंण में बदलाव लाकर अपने दायित्व को समझना होगा।
राष्ट्र के विकास और निर्माण की जिम्मेदारी सरकार के साथ साथ हमारी भी है।  सरकार को जवाबदेय बनाने के साथ साथ हमें भी इस दिशा में अपने प्रयास करने चाहिए।  इसके अतिरिक्त समाज में प्रेम और सौहार्द का वातावरण बनाए रखने का दाइत्व भी हमारा है।  विविधताओं से भरे इस देश को एक सूत्र में पिरोए रखकर ही हम विकास कर सकते हैं।  आवश्यक है कि हम उन तत्वों के बहकावे में न आएं जो समाज को बांट कर हमें कमजोर करना चाहते हैं।
वर्तमान समय में हम आस्था के संबंध में भी भ्रमित हैं।  केवल परंपराओं का अंधानुकरण ही हमारे लिए आस्था का निर्वहन है। हमारी आस्था का केंद्र ईश्वर न होकर वो छद्म बाबा और साध्वी बन रहे हैं जो हमे सही राह नहीं दिखा पा रहे हैं। अतः इनसे सावधान रहने की आवश्यक्ता है।
देश के विकास के लिए हमे कमर कस कर तैयार होना होगा।  अपने निजी स्वार्थों को त्याग कर देश की अखंडता और एकता को बनाए रखना होगा।  तभी हम उस नियति को प्राप्त हो सकेंगे जिससे मिलने के लिए हमारे पू्र्वजों ने महान त्याग किए थे।

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