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साहित्य के विकास के प्रति समर्पित

parvaaz hounsale ki
parvaaz hounsale ki
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साहित्य की सभी विधाओं में लेखन से जुड़ी श्रीमती कांता रॉय जी हिंदी साहित्य में पूर्णतया रची बसी हैं. वह हिंदी साहित्य जगत को समृद्ध बनाने तधा इसके विकास के अपने अभियान के प्रति पूर्णतया समर्पित हैं. लेखन के क्षेत्र में पदार्पण करने वाले लेखकों विशेषतया लघु कथा तथा कविता से संबंध रखने वालों के प्रोत्साहन का प्रशंसनीय कार्य कर रही हैं.
कांताजी का जन्म 20 जुलाई 1969 को कलकत्ता में हुआ था. बचपन से ही आपको साहित्यिक माहौल मिला. साहित्य से लगाव रखने वाले पिता के पास एक बड़ा सा लकड़ी का कबर्ड था. यह कबर्ड साहित्यिक पुस्तकों का संग्रह था. इस कबर्ड ने साहित्य जगत से इनकी मैत्री करायी. छोटी उम्र से ही आप शरतचंद्र, बंकिमचंद्र, हरिवंश राय बच्चन, अमृता प्रीतम, आचार्य चतुरसेन, मृदुला सिंह, मालती जोशी आदि महान साहित्यकारों से इनका परिचय हो गया. उनके द्वारा रचित पात्रों के साथ एक जुड़ाव महसूस करती थीं. उनके शब्दों से प्रेरित होती थीं. अपने मन में उपजे विचारों को अपनी डायरी के साथ साझा करती थीं.
पिता के घर का खुले माहौल ने इनके व्यक्तित्व को और भी आयाम प्रदान किए. कोलकाता में अपने छात्र जीवन के दौरान आप कई सांस्कृतिक संस्थाओं से जुडी रहीं. महाजाति सदन, रविन्द्र भारती , श्री शिक्षा यतन हाॅल में आपने कई स्टेज शो किए.
मायके के माहौल के विपरीत ससुराल का माहौल संकीर्ण व रूढ़िवादी था. यहाँ स्त्रियों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नही थी. अपनी पुत्री के जन्म पर मिलने वाली प्रतिक्रियाओं ने इनके मन में इस माहौल को बदलने की दृढ़ता पैदा की. अपनी पुत्री की परवरिश इन्होंने वैसे ही स्वतंत्र माहौल में की जैसे इन्हें प्राप्त हुआ था. बेटी पढ़ लिख कर स्वावलंबी बन गई और एक दिन वह भी अपने जीवन साथी के संग विवाह कर चली गई. आप सहसा खालीपन महसूस करने लगीं.
लेखन अभी तक डायरी के पन्नों तक ही सीमित था. इसी समय आपके जीवन में परम विद्वान मित्र श्री बिनीत ठाकुर का आगमन हुआ. बिनीत ठाकुरजी मैथली भाषा के कवि तथा राष्ट्रीय पुरस्कारों के विजेता हैं. बिनीतजी ने आपकी प्रतिभा को पहचान कर उसे प्रोत्साहित किया. अापने फेसबुक के ग्रुप्स पर अपनी कहानियां लिखनी आरंभ कीं. सह लेखकों की टिप्पणियों से आपने लेखन की बारीकियां सीखनी आरंभ कीं. तभी श्री योगराज प्रभाकर जी ने एक मार्गदर्शक की भूमिका निभाते हुए आपके लेखन को निखारने में सहायता की. श्री योगराज जी की कटु आलोचनाओं ने अपके भीतर छिपी प्रतिभा को सबके सामने प्रस्तुत किया और सब ने आपको एक लेखिका के रूप मे स्वीकार किया. एक स्नेहशील गुरू के रूप में श्री योगराजजी के सहयोग के लिए आप उनके प्रति आभार प्रकट करती हैं. आपके इस सफर में मानी हुई साहित्यकारा व लघु कथा लेखिका मालती बसंतजी की भी अहम भूमिका रही.
सत्य की मशाल , कर्मनिष्ठा , सार-समीक्षा , फर्स्ट न्यूज़ , मृगमरीचिका , सहित अनेक कई पत्र -पत्रिकाओं में और कई ऑनलाइन साहित्य वेबसाईट पर आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं. इसके अतिरिक्त आकाशवाणी भोपाल से कहानी का प्रसारण भी हो चुका है. आप कई साहित्यिक संस्थाओं जैसे हिंदी लेखिका संघ मध्यप्रदेश , अखिल भारतीय साहित्य परिषद, मध्यप्रदेश लेखक संघ , कलामंदिर भोपाल , विश्व मैत्री संघ मुंबई,  सेवाभारती ,आनंद आश्रम भोपाल की आजीवन सदस्य सहित, राष्ट्रभाषा प्रचार समिति की सम्मानित सदस्य हैं.
राजस्थान डायरी , नायक भारती , सोपान – 2 संकलन , घाट पर ठहराव कहाँ ( लघुकथा संग्रह ) , सोपान -२ , बूंद बूंद सागर (संकलन ) आदि आपकी प्रकाशित पुस्तकें हैं.
कांताजी को कई सम्मान भी प्राप्त हुए हैं.
साहित्य शिरोमणि सम्मान
इमिनेंट राईटर एंड सोशल एक्टिविस्ट , श्रीमती धनवती देवी पूरनचन्द्र स्मृति सम्मान

अपने जीवन में आई सारी सफलताओं का श्रेय आप अपने पति श्री सत्यजीत रॉय जी को देती हैं. आपका मानना है कि उनके सहयोग के बिना यह सब कुछ कर पाना कठिन होता.
साहित्य के एक सिपाही के तौर पर आप अडिग हैं तथा इसकी समृद्धि के लिए प्रयासरत हैं.
आपका कहना है कि
” मेरा लेखन जीवन के तप्त दग्ध रेगिस्तान में मुझे शीतलता प्रदान करता है. मैं वही लिखती हूँ जो मेरे मन में है. मुझे बनावटी संवेदनाओं से परहेज़ है. मैं अपनी आत्मा की आवाज़ को ही अपनी रचनाओं में रोपित करती हूँ.”

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