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शिक्षक का कार्य छात्रों को शिक्षा देना है. किंतु प्रो. संदीप देसाई एक ऐसे शिक्षक हैं जिन्होंने केवल अपनी कक्षा के छात्रों को ही शिक्षित करने का काम नही किया अपितु इनके प्रयासों से कई गरीब व उपेक्षित बच्चों के जीवन में शिक्षा का उंजियाला फैल रहा है. उनका मानना है कि विद्या का दान सर्वश्रेष्ठ दान है.
प्रो. देसाई मुंबई की लोकल ट्रेनों में एक जाना पहचाना चेहरा हैं. हाथ में प्लास्टिक का डब्बा लेकर वह ट्रेनों में घूम घूम कर लोगों से दान मांगते हैं जिससे वह गरीब उपेक्षित बच्चों के लिए अंग्रेजी माध्यम के स्कूल खोल सकें. पिछले छह सालों में वह इस काम के लिए लगभग एक करोड़ रुपये एकत्रित कर चुके हैं. इन पैसों से यह पांच स्कूल चलाते हैं. इनमें से दो राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में, एक महाराष्ट्र के यवतमाल में तथा एक एक सिंधुदुर्ग तथा रत्नागिरी में हैं. प्रो. देसाई का कहना है कि यह सब लोकल ट्रेन के उन मुसाफिरों कें कारण संभव हुआ है जिन्होंने इस काम के लिए दिल खोल कर मदद की.
कई लोग उन्हें झूठा तथा धोखेबाज़ कहते हैं तो कुछ भिखारी कह कर उनका उपहास करते हैं. दो बार उन्हें लोकल ट्रेन में भीख मांगने के लिए हिरासत में भी लिया गया है. किंतु इन बातों से विचलित हुए बिना प्रो. देसाई अपने इस नेक काम को आगे बढ़ा रहे हैं. इनके स्कूलों में 480 विद्यार्थियों को चौथी कक्षा तक शिक्षा मिलती है.
जब वह SP Jain college में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत थे तो उनके विद्यार्थियों द्वारा जितनी भी Social project reports बनाई गईं सभी में एक बात समान थी कि ग्रामीण क्षेत्रों में प्रारंभिक शिक्षा सुविधाओं का आभाव है. अतः ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों को सही शिक्षा देने के उद्देश्य से इन्होंने कुछ अन्य प्रोफेसरों के साथ मिलकर सप्ताहांत सरकारी स्कूलों में जाकर बच्चों को पढ़ाना आरंभ किया. किंतु शीघ्र ही इन्हें आभास हो गया कि सही सुविधाओं का आभाव ही समस्या का कारण है. दो अन्य साथी प्रोफेसरों के साथ मिलकर स्कूल खोलने का निश्चय किया. पैसों का प्रबंध करने के लिए इन्होंने कारपोरेट क्षेत्रों से मदद मांगी. किंतु कोई लाभ नही हुआ. इन्होंने जनसामान्य से मदद मांगने का फैसला किया. उन्हें एक विचार आया कि मुंबई की लोकल ट्रेनों में कई मुसाफिर सफर करते हैं अतः उनसे इस संबंध में मदद मांगी जा सकती है. अतः 2010 सितंबर में गिरगांव की एक लोकल ट्रेन के प्रथम दर्जे के कंपार्टमेंट में पहली बार प्रो. देसाई ने लोगों को अपने इस मिशन के बारे में बता कर मदद मांगी और 700 रुपये एकत्रित करने में सफल रहे. तब से वह रोज़ाना 7 से 8 घंटे मुंबई की लोकल ट्रेनों में घूम कर लोगों से अपने इस नेक काम के लिए मदद मांगते हैं. बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो इनके बारे में सुनकर स्वतः ही मदद के लिए सामने आए. SHLOKA MISSIONERIES के नाम से उन्होंने एक Public Charitable Trust निर्माण किया है.
उनके इस कार्य के कारण ग्रामीण क्षेत्रों के गरीब लोग जिनके बच्चों को अच्छी शिक्षा का अवसर प्राप्त हो रहा है इन्हें भगवान मानते हैं. महाराष्ट्र के यवतमाल की एक महिला ने मीडिया को बताया कि जब हमारे क्षेत्र के किसान आत्महत्या कर रहे हैं तथा दो वक्त के खाने की दिक्कत है इनके द्वारा स्कूल खोला जाना हमारे जीवन में आशा लेकर आया है.
प्रो. संदीप देसाई अपने लक्ष्य के प्रति पूर्णतया समर्पित है. उनका कहना है कि भले ही कुछ लोग भिखारी कह कर उनका उपहास करें किंतु वह बिना विचलित हुए अपनी अंतिम स्वास तक इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए प्रयासरत रहेंगे.
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