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समाज के लिए कुछ करने के लिए साधनों से अधिक इच्छा का होना आवश्यक होता है. यह बात साबित कर दिखाई है छत्तीसगढ़ राज्य के अमिलडिह गांव के निवासी बरुन कुमार प्रधान ने.
बरुन नेत्रहीन बाल विद्या मंदिर नाम से एक स्कूल चलाते हैं जहाँ नेत्रहीनों को शिक्षा की रौशनी प्रदान की जाती है. यह शिक्षा उन्हें निशुल्क दी जाती है. यही नही अति निर्धन परिवारों से आने वाले बच्चों को आश्रय भी प्रदान किया जाता है.
इस स्कूल की स्थापना के पीछे बरुन का उद्देश्य नेत्रहीन बच्चों को स्वावलंबी बनाना है. कक्षा 6 तक चलने वाले इस स्कूल में विद्यार्थियों को ब्रेल लिपि के माध्यम से उत्तम शिक्षा प्रदान की जाती है. स्वावलंबी बनाने हेतु उन्हें विभिन्न प्रकार के कौशल भी सिखाए जाते हैं.
इस स्कूल के पांच शिक्षक जिनमें एक दंपत्ति भी है नेत्रहीन हैं. बरुन की बेटी हिमानी भी स्कूल के संचालन में सहायता करती हैं.
बिना किसी सरकारी सहायता के चलने वाला यह स्कूल 2014 में अपने प्रारंभ से ही लोगों को आकर्षित करता रहा है. कई अन्य लोग भी इसकी सहायता के लिए आगे आए हैं.
यह स्कूल नेत्रहीन बच्चों के लिए एक उम्मीद है. यहाँ पढ़ने वाले विद्यार्थी स्वयं के भीतर एक आत्मविश्वास महसूस करते हैं. उनमें से कई बड़े होकर अपने जैसे अन्य नेत्रहीन लोगों की सहायता करना चाहते है.
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