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चुनौतियां जीवन का हिस्सा है. कुछ लोग इनसे घबरा जाते हैं तो कुछ इन्हें उस अवसर के तौर पर लेते हैं जो ईश्वर ने उन्हें स्वयं को सिद्ध करने के लिए प्रदान किया है. डॉ. आकृति बंसल उन लोगों में हैं जो चुनौतियों को अवसर के तौर पर स्वीकार करते हैं.इनके जीवन का सफर कठिनाइयों से भरपूर रहा लेकिन इन्होंने हार नही मानी. डॉक्टर बनने का अपना सपना पूरा किया.
जब वह स्कूल में थीं अचानक ही वह चलते चलते गिर जाती थीं या इनके घुटने मुड़ने लगते थे. आरंभ में इन्होंने इसे कमज़ोरी समझ कर नज़रअंदाज किया. लेकिन जब समस्या बढ़ गई तो इनके माता पिता ने इन्हें डाक्टर को दिखाया. वह भी कुछ अधिक समझ नही पाए. ढॉक्टर ने इस आश्वासन के साथ कि कुछ ही समय में सब ठीक हो जाएगा कैल्शियम एवं विटामिन की गोलियां लिख दीं. किंतु कोई लाभ नही हुआ. किशोरावस्था में जब इनके साथी बढ़ रहे थे इनका शरीर दिनोंदिन कमज़ोर हो रहा था.
अपने आत्मविश्वास तथा परिवार के प्रेत्साहन से इन्होंने पढ़ाई जारी रखी. दसवीं की परीक्षा में इन्होंने अपने स्कूल में द्वितीय स्थान प्राप्त किया.
इसी बीच इनका परिवार चंडीगढ़ के करीब जिराकपुर में आकर बस गया. यहीं से इन्होंने पढ़ाई के साथ मेडिकल की कोचिंग भी आरंभ कर दी. किंतु धीरे धीरे इनकी स्थिति और बिगड़ने लगी. पहले से सुस्त हो गईं. इनकी चाल में भी फर्क आ गया. फर्श से उठने तथा सीढ़ियां चढ़ने में दिक्कत होने लगी. तब पारिवारिक डॉक्टर ने किसी Neurologist को दिखाने की सलाह दी. Neurologist ने बताया कि आकृति Limb Girdle नामक बीमारी जो कि Muscular Dystrophy का ही प्रकार है से जूझ रही हैं. यह एक ऐसी बीमारी है जिसमें शरीर शनैः शनैः शिथिल पड़ने लगता है और व्यक्ति बिस्तर पर आ जाता है. एक प्रतिष्ठित अस्पताल के Senior Therapist से जब सलाह मांगी तो उसने बहुत निराश करने वाला जवाब दिया “जब तक चल सके चलाएं वरना कोई उम्मीद नही है.”
किंतु इनके परिवार ने इनका हौंसला टूटने नही दिया. इनके पिता चाहते थे कि वह डॉक्टर बने. अतः उस सपने को पूरा करने के लिए वह पढ़ाई में जुट गईं. अपनी माँ तथा भाई का भी इन्हें पूरा सहयोग मिला. बारहवीं में इन्होंने 88% अंक प्राप्त किए. Pre medical test (PMT) में इन्हें पंजाब में 55 तथा चंडीगढ़ मे 43 स्थान मिला. इन्हें GMC {Government medical college} पटियाला में MBBS course में दाखिला मिल गया.
पढ़ाई के लिए इन्हें हॉस्टल में रहना पड़ा. यह एक और चुनौती थी. किंतु.कुछ कर दिखाने के जज़्बे के कारण इन्होंने यह चुनौती भी स्वीकार कर ली. हॉस्टल में कुछ बहुत ही अच्छे मित्र मिले जिन्होंने इनका पूरा सहयोग किया.
इनके मित्रों ने इन्हें समझाया कि यदि कुछ करना है तो अपना पूरा ध्यान उस पर केंद्रित कर दो. बाकी सब अपने आप ठीक हो जाएगा. आकृति सब कुछ भूल कर पढ़ाई में लग गईं.
सब ठीक चल रहा था तभी जून 2012 में अचानक ही इनके पिता का सांस की तकलीफ के कारण देहांत हो गया. पिता जो इनके जीवन के सबसे बड़े प्रेरणा स्रोत थे के निधन से आकृति को गहरा धक्का लगा. इस दुःख में इनके भाई ने इनका बहुत साथ दिया. अपने भाई के सहयोग से वह धीरे धीरे इस सदमे से बाहर आईं और अपने पिता के सपने को पूरा करने के लिए मेहनत करने लगीं.
अंततः अपने परिवार और दोस्तों के सहयोग से 2014 में वह डॉक्टर बन गईं. Internship समाप्त होने के बाद इन्होंने Post Graduation के लिए Entrance Test दिया. वह कुछ ही दिनों में PGI में Junior Resident के तौर पर सम्लित होने वाली हैं.
यह उनकी हिम्मत ही है कि बीमारी के बावजूद वह बिना सहारे के चल लेती हैं. इन्हें उठते समय, सीढ़ियां चढ़ते समय या रैंप पर ही किसी के सहारे की जरूरत पड़ती है. भविष्य को लेकर उनका मानना है कि आगे ईश्वर जो करेंगे उनके भले के लिए करेंगे.
किन्तु अपनी माँ के प्रेम और सहयोग के लिए वह विशेष आभार व्यक्त करती हैं.
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