“वह व्यक्ति दयनीय होता है जो देख तो सकता है किंतु उसके पास दृष्टि नही.” हेलेन केलर शारीरिक कमियों के साथ जन्म लेने का अर्थ यह नही कि वह व्यक्ति अयोग्य है. कुछ कर दिखाने के लिए धैर्य, साहस तथा सकारात्मक सोंच की आवश्यक्ता पड़ती है. जिस व्यक्ति में आत्मविश्वास हो, चिंतन हो वह शारीरिक चुनौतियों के बावजूद भी समाज में अपना स्थान बना सकता है. ऐसा ही कर दिखाया है श्रीकांत बोला ने जो आज Bollant Industries Pvt. Ltd. नामक कंपनी के CEO हैं. इस कंपनी का व्यवसाय 50 करोड़ का है. यह कंपनी ना सिर्फ Eco Friendly उत्पादों का निर्माण करती है बल्कि शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों को रोजगार के अवसर भी प्रदान करती है. श्रीकांत का यह कार्य सराहनीय है क्योंकि वह स्वयं जन्म से नेत्रहीन हैं. वह यह सफलता हासिल कर सके क्योंकी नेत्रहीन होते हुए भी उनके पास वह दृष्टि थी जिसके कारण वह जीवन का मूल्य समझ सके. जन्म से नेत्रहीन जन्मे इस बालक को अयोग्य समझ कर गांव वालों ने इनके माता पिता को इनका जीवन समाप्त कर देने की सलाह दी ताकि उन्हें तथा श्रीकांत दोनों को कष्टों से मुक्ति मिल जाए. लेकिन अशिक्षित होते हुए भी इनके माता पिता ने इन्हें बोझ ना मानकर ईश्वर के वरदान के रूप में स्वीकार किया. नेत्रहीनता ही एक मात्र चुनौती नही थी. उनका परिवार अत्यंत निर्धन था. और सबसे बड़ी बाधा थी समाज का रवैया. किंतु श्रीकांत के चरित्र की दृढ़ता ने सभी बाधाओं को बौना बना दिया. प्रारंभिक शिक्षा गांव की पाठशाला से आरंभ हुई. जहाँ वह सबसे पीछे बैठते थे. शिक्षक भी उनकी तरफ ध्यान नही देते थे. दो वर्ष तक श्रीकांत धैर्यपूर्वक रोज़ाना पांच किलोमीटर चल कर जाते रहे. किंतु कोई लाभ ना होते देख इनके पिता ने इन्हें हैदराबाद के विशेष बच्चों के स्कूल में प्रवेश दिला दिया. वहाँ मिलने वाले प्रेम तथा प्रत्साहन ने अपना असर दिखाया. चेस तथा क्रुकेट जैसे खेलों से इनका परिचय हुआ. अपनी कक्षा में वह प्रथम आने लगे. यही नही भूतपूर्व राष्ट्रपति स्व. श्री अब्दुल कलाम केLead India Project में भागीदारी का अवसर भी प्राप्त हुआ. दसवीं के बाद इन्हें एक और संघर्ष का सामना करना पड़ा. ग्याहरवीं में इन्हें विज्ञान विषय लेकर पढ़ने से रोक दिया गया. कारण इनकी नेत्रहीनता को बताया गया. किंतु इस अन्याय के आगे झुक जाने की बजाय इन्होंने अपने हक के लिए लड़ने की ठानी. छह माह के संघर्ष के बाद इन्हें यह कह कर अनुमति दी गई कि वह अपने जोखिम पर विज्ञान की पढ़ाई करें. श्रीकांत ने इस चुनौती को स्वीकार कर लिया और बाहरवीं की बोर्ड परीक्षा में विज्ञान वर्ग में 98% अंक प्राप्त कर अपना लोहा मनवा लिया. इसके बावजूद भी जब इन्होंने IIT, BITS Pilani तथा अन्य इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षाओं में बैठने का प्रयास किया तो पुनः इन्हें इनकी नेत्रहीनता के कारण परीक्षा देने से रोक दिया गया. हार ना मानते हुए श्रीकांत ने Internet पर उन Engineering Colleges के बारे में पता किया जहाँ वह दाखिला ले सकते थे. इन्होंने US के कई Colleges में दाखिले के लिए अर्ज़ी दी और चार बड़े संस्थानों MIT {Massachusetts Institute of Technology},Stanford, Berkeley तथा Carnegie Mellon की तरफ से इन्हें बुलावा आया. छात्रवृत्ति प्राप्त कर इन्होंने MIT को चुना तथा संस्था के पहले अंतर्राष्ट्रीय नेत्रहीन छात्र होने का गौरव प्राप्त किया. अपना पाठ्यक्रम पूरा करने के बाद इनके सामने चुनाव का प्रश्न था. अमेरिका के Corporate जगत से मिलने वाले अवसर का लाभ उठाएं या अपने देश आकर शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के लिए कुछ करें जिन्हें हमारे समाज में उचित अवसर नही मिल पाते. जुझारू प्रवृत्ति के श्रीकांत ने पुनः संघर्ष का मार्ग ही चुना. भारत वापस आकर इन्होंने एकSupport Service Platform का निर्माण किया जिसकी सहायता से वह विकलांग व्यक्तियों के शिक्षण, पुनर्वास तथा सामाजिक भागीदारी का प्रयास करते थे. किंतु सबसे बड़ा प्रश्न था रोजगार के उचित अवसर प्रदान करना. विकलांग व्यक्तियों को आसानी से रोजगार प्राप्त नही थे. उन्होंने स्वयं ही इस दिशा में कुछ करने का सोंचा और दिसंबर 2012 मेंBollant Industries Pvt. Ltd. की स्थापना की. इसका उद्देश्य विकलांग व्यक्तियो को सही Training देकर रोजगार देना है. इसके साथ साथ यह Industry पर्यावरण की रक्षा तथा किसानों के हितों के लिए काम करती है. अतः किसानों सेAgricultural waste जैसे पत्तियां भूसी आदि लेकर उनसे Eco friendly disposable products तथाPackagingmaterials का उत्पादन करती है. इस प्रकार किसानों को उनके Agricultural waste की पूरी कीमत मिल जाती है. शारीरिक रूप से अक्षम लोगों को रोजगार मिलता है तथा पर्यावरण को Plastic एवं Styrofoam से भी कुछ हद तक मुक्ति मिलती है. BollantIndustries केवल राष्ट्रीय ही नही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी काम करती है. Bollant के संचालन में श्रीकांत को सुश्री स्वर्णलता तिकिलापती, श्री एस. प्रभाकर रेड्डी तथा श्री रवि मंथा का पूर्ण सहयोग मिलता है. श्रीकांत की सोंच का ही नतीजा है कि आज बहुत से विकलांग व्यक्तियों को आत्मसम्मान के साथ जीने का मौका मिल रहा है. श्रीकांत ने यह साबित कर दिया है कि हम चाहे किसी भी स्थिति में हों धैर्य, साहस तथा उचित सोंच के साथ हम अपने जीवन को स्वयं और दूसरों के लिए उपयोगी बना सकते है.
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